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श्राद्ध: पुरखों की याद में श्रद्धा का अनुष्ठान

हर इंसान अपने पुरखों—माता, पिता, नाना-नानी, दादी-दादा और पिछली पीढ़ियों—के योगदानों को सम्मानित और स्मरण करता है। हिंदू धर्म में इसे श्राद्ध कहा जाता है, जो श्रद्धा और कृतज्ञताभाव से संपन्न कर्म है। भगवद्गीता में भी स्पष्ट कहा गया है कि पितर पूजने वाले वह पितरों को प्राप्त होते हैं और परमात्मा की पूजा परमात्मा को। सरल शब्दों में, श्राद्ध हमारे पूर्वजों के प्रति आध्यात्मिक ऋण की पूजा है।

People in traditional attire participate in a ritual by a riverbank, with an ornate temple and bridge in the background. Warm hues dominate.
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पितृपक्ष (Pitru Paksha): श्राद्ध का पवित्र काल

श्राद्ध का सबसे महत्वपूर्ण समय पितृपक्ष है, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है—जहां हम 16 दिन तक पुरखों की तर्पण एवं पिंडदान करते हैं।

2025 में पितृपक्ष • 7 सितम्बर से 21 सितम्बर तक रहेगा, जिसमें अंतर्गत सर्वपितृ अमावावस्या (महालया) आता है। यह समय हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति, मोक्ष, और परिवार की समृद्धि हेतु माना गया है। श्राद्ध के प्रमुख कर्म और विधियाँ

1. तर्पण और पिंडदान

– तर्पण में जल, काले तिल, कुश, और गंगाजल से तीन बार जल अर्पण करके पितरों को याद किया जाता है।– पिंडदान में चावल, जौ, दूध, घी मिलाकर छोटे पिंड बनाए जाते हैं।


2. श्रद्धापूर्वक भोजन (श्राद्ध भोजन)

– सात्विक आहार (मांस, प्याज़, लहसुन और मदिरा वर्जित)– श्राद्ध भोजन में खीर, पूड़ी, सब्ज़ी, फल, मिश्री आदि शामिल किए जाते हैं।


3. दान-पुण्य और अन्नदान

– श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना, वस्त्र देना, दक्षिणा देना शुभ माना जाता है।– गाय, कुत्तों, कौओं को अन्न-जल देने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है—गरुड़ पुराण अनुसार कौआ ग्रहण करे तो पितरों को तृप्ति होती है।


4. विशेष तिथियाँ: सप्तमी, अष्टमी, नवमी

– सप्तमी श्राद्ध तिथि: दिवंगतजन की मृत्यु जिस सप्तमी तिथि को हुई हो, उसी दिन श्राद्ध करें। मुहूर्त दोपहर के समय (कुत्पा / रौहिण) श्रेष्ठ माना जाता है।– अष्टमी श्राद्ध में आठ ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत शुभ मान्य है और विशिष्ट भोजन जैसे लौकी खीर, मिश्री-इलायची आदि शामिल हों।– नवमी (मातृ नवमी) पर दिवंगत माताओं का श्राद्ध किया जाता है—तिथि पर पिंडदान, तर्पण और दान-दान करना अनिवार्य रहता है।


5. श्रद्धा और आचार-विचार

– श्राद्ध करते समय मनःशुद्धि, पवित्रता, स्वच्छता और भक्तिमय श्रद्धा अत्यंत आवश्यक है।– विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध से पितृदोष दूर होता है और परिवार में सुख-शांति आती है।

A family in traditional attire sits outdoors, clapping as a bird flies overhead. Plates of food and crows surround them. Warm sunlight and garlands.
A family in traditional attire sits outdoors, clapping as a bird flies overhead. Plates of food and crows surround them. Warm sunlight and garlands.

क्यों महत्वपूर्ण है श्राद्ध?

  1. पुरातन धर्मग्रंथों में वर्णित पितृलोक यात्रा– ऋग्वेद और ब्राह्मण ग्रंथों में अग्नि के माध्यम से पिंडदान पितरों तक पहुँचने का वर्णन मिलता है।

  2. ग्रंथों की मान्यता और शास्त्रों की सीख– गरुड़ पुराण एवं अन्य पुराणों में श्राद्ध के लाभ, तर्पण के नियम, और पूर्वजो की तृप्ति हेतु विधियाँ विस्तार से बताई गई हैं।

  3. आध्यात्मिक और पारिवारिक लाभ– श्राद्ध से पितृऋण उतरता है, आत्मा को शांति मिलती है, और वंशजों को आशीर्वाद व समृद्धि मिलती है।

बिंदु

विवरण

श्राद्ध

हमारे पूर्वजों को श्रद्धा से अर्पित एक अनुष्ठान

पितृपक्ष

16-दिवसीय श्राद्ध-काल (7 से 21 सितम्बर 2025)

मुख्य कर्म

तर्पण (जल + तिल), पिंडदान, सात्विक भोजन, ब्राह्मण और जीवों को अन्नदान

विशेष तिथियाँ

सप्तमी, अष्टमी (8 ब्राह्मण), नवमी (मातृ नवमी)

दर्शन

श्रद्धा, शुद्धता, दान-पुण्य, संयम, सात्विक जीवन

आप इसे कैसे अपना सकते हों?

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  • परिवार की अपनी कोई श्राद्ध कहानी जो साझा करना चाह रहे हैं, वह जोड़ें।

  • स्थानीय रीति-रिवाज (जैसे गया तीर्थ, घर-परिवार की अपनी परंपराएँ) शामिल करें।

  • पाठकों के लिए श्राद्ध शॉपिंग चैनल, सामग्री सूची, मंत्र-पोस्टर आदि डाउनलोड लिंक उपलब्ध कराए।

 
 
 

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